अमित शाह ने संविधान पर चर्चा के बीच जिसकी कविता का किया जिक्र, कौन थे वो दुष्यंत…
संविधान पर चर्चा के बीच दुष्यंत कुमार की कविता का जिक्रImage Credit source: Social media
‘एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है. कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है’…ये मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की एक कविता है, जिसका जिक्र आज (17 दिसंबर) केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में किया है. दरअसल, अमित शाह देश के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ पर राज्यसभा में संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर चुटकी लेते हुए अपने अंदाज में दुष्यंत कुमार ये कविता पढ़ी और इमरजेंसी का दौर याद दिलाया.
अमित शाह ने कहा, ‘एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर ये तमाशा देखकर हैरान है. कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े हाल कपड़े पहने हुए, मैंने उसको नाम पूछा तुम कौन हो, तो उसने कहा मैं संविधान हूं’. ये कविता पढ़ने के बाद उन्होंने बताया कि दुष्यंत कुमार की कविता है, जो इंदिरा गांधी को समर्पित है’.
कौन थे दुष्यंत कुमार?
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव के रहने वाले दुष्यंत कुमार हिंदी के एक जाने-माने कवि, कथाकार और गजलकार थे. उन्होंने ‘एक गुड़िया’ वाली ये कविता तब कही थी जब देश में इमरजेंसी का दौर था. तब वह आकाशवाणी में काम करते थे और इस कविता के जरिए उन्होंने सीधे सरकार पर निशाना साधा था. 27 सितंबर 1931 को दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों और कविताओं से अपार ख्याति अर्जित की थी. उनकी कविताएं और गजलें आज भी चर्चा में रहती हैं.
कितने पढ़े लिखे थे?
दुष्यंत कुमार की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई थी और उसके बाद माध्यमिक शिक्षा नहटौर(हाईस्कूल) से और चंदौसी से उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की थी. उन्होंने कविताएं तो 10वीं से ही लिखनी शुरू कर दी थी और इंटरमीडिएट के दौरान उनकी शादी भी हो गई, लेकिन उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी में बीए और एमए किया. उनकी पढ़ाई इतने पर ही नहीं थमी, बल्कि उन्होंने मुरादाबाद से बीएड भी किया और उसके बाद आकाशवाणी में काम करने लगे थे.
सरकारी सेवा में रहते हुए दुष्यंत कुमार ने कई सरकार विरोधी काव्य रचनाएं की थीं, जिसकी वजह से उन्हें सरकार के कोपभाजन का भी शिकार होना पड़ा था. साल 1975 में उनका प्रसिद्ध गजल संग्रह ‘साये में धूप’ प्रकाशित हुआ था, जिसे खूब लोकप्रियता मिली थी. हालांकि उसी साल यानी 30 दिसंबर 1975 को हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई थी.