कौन थे ‘गोबर’ अखबार निकालने वाले ‘मामाजी’, जिनकी पुण्यतिथि पर MP के झाबुआ म… – भारत संपर्क
झाबुआ में मामाजी की समाधि पर उमड़ी भीड़
देश के ख्यातिनाम समाजवादी चिंतक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मामा बालेश्वर दयाल की 27वीं पुण्यतिथि पर झाबुआ के बामनिया स्थित भील आश्रम में जश्न का माहौल है. हमेशा की तरह इस साल भी 26 दिसंबर को मामाजी के हजारों अनुयायी उनकी समाधि पर शीष झुकाएंगे. इसके लिए मध्यप्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान से उनके अनुयायियों के पहुंचने का दौर शुरू हो गया है. मामाजी को भगवान मानने वाले दूर दूर से पदयात्रा करते और भजन कीर्तन गाते हुए आ रहे हैं.
इस मौके पर आश्रम में दो दिन पहले से ही मेला लगा है. यहां पहुंचे अनुयायी रतजगा कर अपने आराध्य का स्मरण कर रहे हैं. मामाजी के प्रति लोगों की आस्था को भुनाने के लिए अमरगढ रोड स्थित भील आश्रम क्षेत्र में हार-फूल, अगरबत्ती, नारियल, चाय-नाश्ता, फोटोग्राफी समेत कई अन्य तरह की दुकानों सज गई हैं. इस दौरान सड़कों पर गले में मामाजी का लॉकेट और हाथ में हार-फूल लेकर मामाजी अमर रहे के नारे लगाते भक्तों की भीड़ देखने लायक है.
गोबर अखबार निकाल कर दिया आजादी का संदेश
बताया जा रहा है कि इन श्रद्धालुओं को कोई निमंत्रण नहीं जारी होता, बल्कि लोग खुद से पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें श्रद्वासुमन अर्पित करने के लिए बामनिया के लिए चल पड़ते हैं. यहां 26 दिसंबर की दोपहर तक जश्न का माहौल रहता है, इसके बाद लोग अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान मामाजी ने बामनिया जैसे छोटे व साधनहीन गांव से खुद का अखबार निकाला था. गोबर नाम से छपने वाला यह अखबार उनके अपने छापाखाना में छपता था. इसमें अमेरिका की एक पैडल से चलने वाली मैन्युअल प्रिंटिग प्रेस लगी थी. यहां काम की बात और गोबर जैसे साप्ताहिक अखबार भीली भाषा में प्रकाशित होते थे.
भगवान मानते हैं लोग
इन अखबारों का वितरण राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाडा और सागवाडा के अलावा मध्य प्रदेश के रतलाम, सैलाना बाजाना, झाबुआ, दाहोद,पंचमहाल आदि क्षेत्रों में वितरित होते थे. मामाजी ने अपनी आत्मकथा, संघर्षो की कहानी के अलावा भीली भाषा में महाभारत व रामायण भी लिखी थी. मामाजी को उनके अनुयायी भगवान मानते हैं. यही कारण है कि उनके अवसान के बाद भी भील आश्रम के प्रति लोगों का आकर्षण बना हुआ है. आलम यह है कि उनकी पुण्यतिथि पर लोग सैकडों किमी पैदल चलते हुए यहां पहुंच रहे हैं. बांसवाड़ा से पदयात्रा कर पहुंचे बदिया भगत के मुताबिक वह मामा जी के धाम में बीते 30 साल से लगातार आ रहे हैं.
मस्त मौला था मामाजी का स्वभाव
उनके साथ अब नई पीढ़ी भी यहां आने लगी है. कहा कि मामाजी हमारे लिए भगवान है. किसी भी संकट में उनका नाम लेते ही संकट टल जाता है.उनके अनुयायी कहते हैं कि शायद ही किसी ने मामा जी के हाथ में किसी ने रुपये देखे हों. दरअसल उनके समर्थक ही उनके रहन सहन की व्यवस्था कर देते थे. कई बार तो उन्हें नंगे पांव रेलवे स्टेशन पर घूमते भी देखा गया है. मस्त मौला स्वभाव की वजह से अपने जीवन के अंतिम समय में भी जब डॉक्टर की उनकी जांच के लिए आते तो वह कभी बाजार में तो रेलवे स्टेशन पर मिलते थे.
रिपोर्ट: उत्सव सोनी, झाबुआ