JDU को किससे खतरा, निशांत को पावर सेंटर बनाने के पीछे किसका दिमाग, क्या यही…
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नीतीश कुमार और निशांत कुमार.
ताउम्र परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले नीतीश कुमार के लिए उनकी पार्टी को बचाए रखना आसान नहीं है. नीतीश अचेत अवस्था में हैं, ये तो विरोधी डंके की चोट पर कह रहे हैं. मगर, उनकी राजनीति अब अंतिम पारी में पहुंच चुकी है, इसकी चिंता जेडीयू नेताओं से कहीं ज्यादा उन लोगों को सता रही है जो नीतीश कुमार के समाज का हिस्सा हैं. इसलिए नीतीश के शुभचिंतक और परिजन कैमरे पर पिछले कुछ महीनों से नीतीश के लाल निशांत की राजनीति में प्रवेश को लेकर गुहार करते देखे गए हैं.
निशांत को पावर सेंटर के रूप में लाना क्यों जरूरी है?
नीतीश के पेट में दांत है, ऐसा लालू प्रसाद यादव कई साल पहले कह चुके हैं. इसलिए नीतीश कुमार भले ही बड़ी संख्या की हैसियत रखने वाले जाति से ना हों लेकिन उन तमाम लोगों के नेता जरूर बन गए हैं, जो लालू प्रसाद के शासन काल में प्रताड़ित होते रहे हैं. जाहिर है कि नीतीश ने बड़ी ही होशियारी से ओबीसी से ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) को अलग किया. वहीं दलितों में महादलित बनाकर अपने लिए बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया. इतना ही नहीं महिलाओं को पंचायत स्तर से लेकर जीविका समूह में भागीदारी देकर आधी आबादी को अपना मुरीद बना लिया.
इसलिए नीतीश पिछले 20 सालों से प्रासंगिक हैं और सत्ता की चाबी दबंगई से अपने पास रखे हुए हैं. जाहिर है नीतीश का राजनीतिक खेल अब अंतिम दौर में है. इसलिए वारिश की तलाश लंबे समय से होती आ रही है. इस कवायद में कभी कुर्मी समाज से आने वाले आरसीपी सिंह तो कभी वीआरएस लेकर बिहार में जेडीयू के लिए सेवा देने वाले मनीष वर्मा खासे चर्चा में रहे. मगर, दोनों नौकरशाह जेडीयू की कमान संभालने से पहले ही सीन से हट गए. पार्टी में अब क्राइसिस साफ दिख रही है.
वहीं जेडीयू के बड़े नेताओं में कोई भी जे़डीयू की विरासत को संभालने का दम नहीं रखता है, ये साफ दिख रहा है. कहा जाता है कि खुद नीतीश ने सेकेंड लाइन तैयार नहीं होने दी. इसलिए शरद यादव, ललन सिंह या फिर कुशवाहा समाज के उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में दो बार शामिल होकर भी असलियत का अहसास हो चला है.जाहिर है 13 से 14 फीसदी वोट को नीतीश के बाद कौन संभालेगा? इसकी चिंता पिछले दो सालों से खूब चल रही है. यही वजह है कि अंतिम विकल्प के रूप में निशांत का नाम पार्टी कैडर और नेता के अलावा परिवार के शुभचिंतक आगे बढ़कर लेने लगे हैं.
निशांत पर दांव खेलने की मजबूरी क्या है?
कुर्मी समाज के लोग नीतीश का ताज निशांत के अलावा किसी और को देने के पक्ष में नहीं हैं. इसलिए नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित परिजन पिछले कुछ महीनों से निशांत को राजनीति में आने को लेकर मनाने में जुटे थे. वैसे राजनीति में अपनी इच्छा पूरी करने के लिए समर्थकों से कहलवाने की एक रस्म रही है, जो राजनेता जितनी सहूलियत से ऐसा करता है, वो उतना ही त्यागी और बलिदानी के रूप में देखा जाता है.
सवाल ये है कि नीतीश ने अब तक सेकेंड लाइन क्यों नहीं तैयार की. वहीं, कभी तेजस्वी तो कभी उपेंद्र कुशवाहा या फिर आरसीपी और मनीष वर्मा को सब्जबाग दिखाने वाले नीतीश क्या इसी दिन के इंतजार में थे. जाहिर है 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज रहने वाले नीतीश ने पार्टी को इस कगार पर ला खड़ा कर दिया है कि जहां पार्टी को बचाने के लिए उनके सुपुत्र को संकटमोचक के रूप में उतरने की मांग तेज हो गई है.
निशांत की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अब मीडिया की नजरों में कोलाहल मार रही है. इसलिए निशांत के परिजन और जेडीयू के समर्थकों में उत्साह का संचार हो रहा है. जाहिर है क्राइसिस को दूर करने वाले के रूप में निशांत का चेहरा आगे है, जिसे जेडीयू का कोर वोटर जोर-जोर से पुकार रहा है. बीजेपी ने भले ही नीतीश के स्वास्थ्य को देखते हुए लंबी प्लानिंग कर रखी हो लेकिन नेतृत्व नीतीश का होगा इस बात से बीजेपी नेता इनकार नहीं कर पा रहे हैं. अब जेडीयू को भविष्य मिल गया है. इसलिए 13 से 14 फीसदी वोट कोई हड़प लेगा, इसकी संभावना कम होती दिख रही है.
नीतीश कब होंगे रिटायर और निशांत कब लेंगे एंट्री?
नीतीश के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ा जाएगा. वहीं, निशांत कभी पार्टी के औपचारिक स्ट्रक्चर में शामिल हो जाएंगे. जाहिर है नीतीश जो चाहेंगे वही होगा. इसलिए जेडीयू में निशांत को आगे कर जेडीयू अपने वोट बैंक को बचाने का भरपूर प्रयास करेगी, ये तय माना जा रहा है. बकौल निशांत उनके पिता नीतीश स्वस्थ हैं. इसलिए अगले पांच साल तक सीएम रह सकते हैं. इस बीच निशांत अपनी पार्टी को मजबूत करने का आह्वान कार्यकर्ताओं से करते हैं.
निशांत पार्टी की हैसियत तीन नंबर से ऊपर देखना चाह रहे हैं .ताकि नीतीश किसी भी सूरत में एकनाथ शिंदे की हालत में पहुंचने से बचें. नीतीश की तरह निशांत भी लालू प्रसाद परिवार से बेहतर रिश्ते रखने के हिमायती दिख रहे हैं लेकिन साल 2005 से पहले के बिहार की परिस्थितियों को गिनाकर निशांत अपने भविष्य की राजनीतिक दिशा को लेकर इशारा कर रहे हैं.
फिलहाल निशांत अपने पिता को अगले पांच साल तक सीएम बनाने की बात कर रहे हैं. वहीं पिता की छाया में राजनीतिक रूप से परिपक्व होकर निशांत जेडीयू की कमान संभालेंगे, ऐसा प्रतीत हो रहा है. जेडीयू का भविष्य अब तैयार है और अपनी बारी का इंतजार कर रहा है…निशांत ऐसा मैसेज देने में कामयाब दिख रहे हैं.