डिजिटल इंडिया में आखिर कैश ने क्यों उड़ाई Apple और Mercedes…- भारत संपर्क

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डिजिटल इंडिया में आखिर कैश ने क्यों उड़ाई Apple और Mercedes…- भारत संपर्क
डिजिटल इंडिया में आखिर कैश ने क्यों उड़ाई Apple और Mercedes की नींद? वजह जान चौंक जाएंगे आप

एपल हुआ कैश से परेशान

साल 2016 में जब देश में नोटबंदी हुई, उसी समय यूपीआई पेमेंट पॉपुलर होना शुरू हुआ. अगर नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के लेटेस्ट डेटा को देखें, तो अप्रैल 2024 में देश के अंदर यूपीआई से 19.64 लाख करोड़ रुपए का लेनदेन हुआ. जबकि मार्च 2017 में ये महज 2,425 करोड़ रुपए था. फिर भी देश के अंदर कारोबार करने वाले एपल और मर्सडीज जैसे लग्जरी ब्रांड की नींद कैश ने उड़ाई हुई है.

दरअसल एपल ने जब दिल्ली और मुंबई में अपने स्टोर खोले, तो उसने कैश पेमेंट की व्यवस्था नहीं की. लेकिन जल्द ही उसे समझ में आ गया कि इससे काम नहीं चलेगा. भारत में कारोबार करने के लिए उसने फिर दिल्ली और मुंबई दोनों आउटलेट पर कैश काउंटिंग मशीन और कैश बिलिंग मशीन को इंस्टाल किया. लेकिन इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

एपल की 9% तक सेल कैश से

आईफोन बनाने वाली कंपनी एपल भारत में अपने दो फ्लैगशिप स्टोर से जो टोटल सेल करती है, उसमें से करीब 7 से 9 प्रतिशत सेल कैश में होती है. ईटी की खबर के मुताबिक अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में उसकी अपने स्टोर से होने वाली सेल में कैश की हिस्सेदारी महज 1% है.

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इससे भी रोचक बात ये है कि अगर आप क्यूओरा पर पूछे जाने वाले सवालों को देखेंगे, तो बड़ी संख्या में भारतीय लोगों ने पूछा है कि क्या एपल के स्टोर पर कैश में पेमेंट कर सकते हैं या नहीं. कुछ ऐसे ही हालात कारों की सेल में भी देखने को मिलते हैं. वहीं दिल्ली में लोग एपल के स्टोर पर मुंबई की तुलना में ज्यादा कैश डील करते हैं.

मर्सडीज को भी संभालना पड़ता है कैश

सरकार ने देश में 2 लाख रुपए से अधिक के सिंगल कैश पेमेंट पर 2017 से रोक लगाई हुई है. ताकि देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिले. इसके बावजूद देश में कैश इन सर्कुलेशन मार्च 2024 तक 35.15 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो मार्च 2017 के 13.35 लाख करोड़ रुपए के दोगुने से भी अधिक है. इतनी रोक के बावजूद कारों की खरीद में कैश का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है.

कार डीलर्स के संगठन ‘फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशंस’ (FADA) के आंकड़ों की मानें, तो देश में 15 से 20 प्रतिशत कारों की सेल सेल्फ-फंडेड होती है. यानी लोग कार खरीदने के लिए लोन नहीं लेते हैं. जबकि लग्जरी कारों की सेल में पांचवे हिस्से के बराबर की सेल कैश पेमेंट होती है.

फाडा के मुताबिक सेल्फ-फंडेड कारों के लिए लोग 2 लाख रुपए तक ही कैश पेमेंट कर सकते हैं. बाकी पेमेंट को चेक, डिमांड ड्राफ्ट या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ट्रांसफर करने का नियम है. लेकिन इस बारे में मर्सडीज का डेटा कुछ और कहानी कहता है.

मर्सडीज-बेंज का कहना है कि मुंबई और बेंगलुरू जैसे मार्केट में सेल्फ-फंडेड कारों की खरीद का प्रतिशत ज्यादा है. यहां करीब 25 प्रतिशत कारों की खरीद सेल्फ फंडेउ होती है, जबकि देश के अन्य मार्केट में ये आंकड़ा 15% तक जाता है. इन सभी कस्टमर्स में से करीब 20 प्रतिशत ग्राहक कैश में पेमेंट करना पसंद करते हैं.

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