फिलिस्तीन के मुसलमानों पर फ्रांस के मैक्रों को अचानक क्यों आया प्यार? – भारत संपर्क


फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू.
गाजा में सीजफायर की कवायद के बीच फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलिस्तीन को अलग देश की मान्यता देने की घोषणा की है. मैक्रों ने अपने ऐलान में कहा है कि सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र की बैठक में वे इसका प्रस्ताव रखेंगे. 2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति बनने के बाद मैक्रों ने पहली बार अरब के किसी देश को लेकर इतना बड़ा ऐलान किया है. सवाल उठ रहा है कि आखिर मैक्रों को अचानक से फिलिस्तीन के मुसलमानों को लेकर प्यार क्यों जगा है?
वो भी तब, जब यूरोप में सबसे ज्यादा यहूदी फ्रांस में ही रहते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक फ्रांस में करीब 5.5 लाख यहूदी रहते हैं. फ्रांस के अधिकांश यहूदी पेरिस और ल्योन शहर में रहते हैं.
मैक्रों ने फिलिस्तीन को मान्यता क्यों दी?
1. RFI के मुताबिक फ्रांस फिर से अरब नीति पर वापस लौट रहा है. 1958 में चार्ल्स डी गॉल ने इजराइल को झटका देते हुए अरब नीति लागू की थी. इसके तहत फ्रांस ने इजराइल से परमाणु समर्थन भी वापस ले लिया. इतना ही नहीं इजराइल ने जब मिस्र और सीरिया पर हमले की कोशिश की तो फ्रांस ने उसे हथियार देने से इनकार किया. डी गॉल समाजवादी नेता माने जाते थे.
उनके इस प्रयास को आगे के भी राष्ट्रपतियों ने जारी रखा. 1974 में यूएन में फ्रांस ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता दी. इजराइल और अमेरिका ने इसका विरोध किया, लेकिन अरब नीति को लेकर फ्रांस पीछे नहीं हटा. 1975 में फ्रांस ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को दफ्तर खोलने के लिए पेरिस में जगह उपलब्ध कराई.
1996 में फ्रांस के राष्ट्रपति जैक्श शिराक जब यरूशलेम आए, तब इजराइली सैन्य बलों से उनकी झड़प हो गई. इस विवाद ने मुस्लिम देशों में उन्हें हीरो बना दिया, लेकिन शिरैक के बाद फ्रांस ने खुलकर फिलिस्तीन का समर्थन नहीं किया. 2017 के बाद मैक्रों भी इस मामले में सुस्त पड़े रहे, लेकिन अब वो अचानक सक्रिय हो गए हैं. कहा जा रहा है कि फ्रांस इसके जरिए फिर से अरब नीति को लागू करना चाह रहा है.
2. इमैनुएल मैक्रों का कार्यकाल 2027 में खत्म हो रहा है. मैक्रों 2033 में होने वाले आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. 47 साल के मैक्रों 2033 में 55 साल के हो जाएंगे. मैक्रों ने हाल ही में 2033 की तैयारी करने की अपील अपने लोगों से की है. मैक्रों ने एक रैली में कहा कि मुझे अब 2033 में आपकी जरूरत होगी.
मैक्रों समाजवादी नेता माने जाते हैं, जो दक्षिणपंथी नेताओं के विपरित सभी पक्षों को साधने में विश्वास रखते हैं. फ्रांस में 13 प्रतिशत मुसलमान हैं, जो पश्चिमी यूरोप में सबसे ज्यादा है. मैक्रों के इस कदम को इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है.
3. मैक्रों के इस कदम को इजराइल को अलग-थलग और शांत करने के कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है. इजराइल लगातार मिडिल ईस्ट के देशों पर अटैक कर रहा है. गाजा में उस पर मानवता को खत्म करने का आरोप लगा है. मैक्रों ने जिस तरीके से फिलिस्तीन को दर्जा देने की बात कही है, वो इजराइल के लिए झटका है.
ब्रिटेन पर भी अब इसका दबाव बढ़ेगा. ब्रिटेन अगर फिलिस्तीन को मान्यता दे देता है तो इजराइल को पूरे यूरोप से बड़ा झटका लगेगा.
फिलिस्तीन को लेकर मैक्रों क्या चाहते हैं?
फ्रांस के प्रस्ताव के मुताबिक फिलिस्तीन को अलग देश का दर्जा मिले और हमास उसे राजनीतिक रूप से संचलित करे. फ्रांस ने हमास से हथियार डालने के लिए भी कहा है. वहीं इजराइल इसका विरोध कर रहा है.
इजराइल का कहना है कि अगर फिलिस्तीन को सेना रखने की छूट मिलती है तो ईरान मिडिल ईस्ट में खेल कर सकता है. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के मुताबिक फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देकर आतंक को बढ़ावा देने जा रहा है.