ब्राजील के इस वैज्ञानिक ने खुद को सांप से 40 हजार बार क्यों कटवाया? | brazil… – भारत संपर्क


वैज्ञानिक ने खुद को 40 हजार बार कटवाया
सांपों को लेकर एक अलग ही वहम पाया जाता है पूरी दुनिया में. हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति में भी कई तरह की भ्रांतिया हैं. मसलन सांप दूध नहीं पी सकते, लेकिन नागपंचमी के दिन उसे दूध पिलाया जाता है. कई फिल्में भी ऐसी बनी हैं हमारे यहां, जिसमें नाग-नागिन को इच्छाधारी दिखाया गया. इन फिल्मों ने वहम बिठा दिया, कि इच्छाधारी नाग नागिन अपने दुश्मनों की फोटो अपनी आंख में कैद कर लेते हैं और बदला लेकर ही मानते हैं. ये तब है, जब विज्ञान ये साफ कर चुका है, कि सांपों के आंख तो होते हैं, लेकिन उनमें रौशनी बहुत कम आती है. उनके देखने की रेंज काफी छोटी होती है. ऐसी भ्रांतियों के बीच एक हकीकत है जो ज्यादा डरावनी है.
वो ये कि दुनियाभर में लाखों लोग सांप के जहर का शिकार बनते हैं. कई इस वजह से दम तोड़ देते हैं. भारत की ही बात करें तो सांपों की वजह से होने वाली वैश्विक मौतों में से लगभग आधी भारत में होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, सर्पदंश का जहर एक नजरअंदाज की गई बीमारी है. इस समस्या का समाधान जहर की काट यानी एंटीवेनम ढूढना है. साथ में ये भी पता लगाने की जरूरत है कि आखिर कुछ सांप इंसानों को काटते क्यों है. पर चिंता की बात है कि इस तरह जानकारी के लिए बड़े स्तर पर रिसर्च की काफी कमी है. इसी मकसद के साथ ब्राजील के एक वैज्ञानिक ने खुद को ही सांप से कटवाने का चौंकाने वाला काम किया है.
एक्सपेरिमेंट कैसे किया गया?
ब्राजील के इस रिसर्चर का नाम जोआओ मिगेल आल्वेस-नूनिस है. ये भी यहां जानना जरूरी है कि सांप के काटने के सबसे ज्यादा मामले ब्राजील में भी आते हैं. आल्वेस-नूनिस ने खुद को दक्षिणी अमेरिका के सबसे जहरीले वाइपर जराराका से 40 हजार बार से भी ज्यादा कटवाया है. इनके नतीजे नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए हैं.
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आल्वेस-नूनिस का कहना है कि ब्राजील में सांपों के बर्ताव पर रिसर्च आमतौर पर नहीं किया जाता है. ज्यादातर शोध उन कारकों की तरफ ध्यान नहीं देते जो सांपों के काटने की वजह बनते हैं.
वो कहते हैं कि अगर आप मलेरिया बीमारी के उपर रिसर्च करें तो आप उसकी वजह बनने वाले वायरस पर ध्यान ज्यादा देते हैं लेकिन जब तक उसे फैलाने वाले मच्छर की स्टडी नहीं होगी तब तक समस्या का समाधान नहीं मिल सकता है. आल्वेस-नूनिस ने 116 साँपों का परीक्षण किया, हर एक सांप पर 30 बार कदम रखा. यानी कुल मिलाकर आल्वेस-नूनिस ने 40,480 बार सांप से कटवाने के लिए कदम बढ़ाया.
अभी तक लोगों के बीच आम समझ रही है किसी भी सांप को लेकर या जराराका सांप को लेकर कि ये तभी हमला करते हैं जब कोई उन्हें छुएं या पैर रख दें. हालांकि आल्वेस-नूनिस की रिसर्च में यह साबित नहीं हुआ है.
ध्यान रहे कि इस एक्सपेरिमेंट में किसी भी सांप को नुकसान नहीं पहुंचा है. वैज्ञानिक नूनिस ने चमड़े पर फोम चढ़े विशेष जूते पहनकर सांप के पास या उसके ऊपर हल्का सा कदम रखा ताकि वह जख्मी ना हो.
क्या कहते हैं नतीजे?
एक्सपेरिमेंट से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सांप जितना छोटा होगा उसके काटने का चांस उतना ज्यादा है. दूसरी अहम चीज है कि मादा सांप ज्यादा आक्रामक होती हैं और उनके काटने की संभावना ज्यादा रहती है. खासकर दिन के वक्त और उनकी युवावस्था में.
इसके अतिरिक्त, अगर सांप को शरीर के मध्य भाग या उसकी पूंछ की तुलना में सिर पर छुआ जाए तो अपने बचाव में सांप के काटने की संभावना बहुत बढ़ जाती है. स्टडी में ये भी पता चला है कि ज्यादा तापमान पर सांप ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं.
यह सारी जानकारी सर्पदंश के बारे में जानकारी बढ़ाने और ऐसी सुदूर जगहों पर काम की साबित होने की उम्मीद है जहां सांपों के काटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं और लोगों को इलाज सही समय पर नहीं मिल पाता है.