mahilaye apne upar ho rhe torture ke khilaf kanuni kadam uthayen. – महिलाएं…

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mahilaye apne upar ho rhe torture ke khilaf kanuni kadam uthayen. – महिलाएं…

International Day in Support of Victims of Torture उन मानवीय स्थितियों का समर्थन करता है जहां हर व्यक्ति को गरिमा से रहने का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिवस की शुरुआत अपराधियों के मानवाधिकार के संरक्षण के लिए की गई थी। जबकि हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें अपने घर और कार्यस्थल पर भी शोषण का सामना करना पड़ता है।

किसी को, किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाना मानवता के विरुद्ध एक अपराध है। फिर चाहें वह कोई आम व्यक्ति हो या अपराधी। एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का किसी भी आधार पर शोषण किया जाना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। लोगों किसी भी तरह की यातना या अत्याचार को बर्दाश्त न करें और उसके खिलाफ आवाज़ उठाएं, International Day in Support of Victims of Torture का उद्देश्य यही है। फिर चाहें यह घर में हो, सार्वजनिक स्थल पर या कार्यस्थल पर।

कुछ यातनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें समझने में ही बहुत समय लग जाता है। मनोवैज्ञानिक जिसे स्टॉकहोम सिंड्रोम कहते हैं, वह बहुत सारे लोगों के जीवन की वास्तविकता है। जहां लगतार यातना बर्दाश्त करना उनकी नियति बन जाती है। बहुत बार पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर लड़कियां भी घर और कार्यस्थल पर यातना की शिकार होती रहती हैं। इसकी वजह कई बार भावनात्मक निर्भरता और असुरक्षा होती है, तो कई बार आर्थिक निर्भरता और असुरक्षा।

इंटरनेशनल डे इन सपोर्ट ऑफ़ विक्टिम्स ऑफ टॉर्चर (International Day in Support of Victims of Torture)

26 जून को यातना के पीड़ितों (victim of torture) के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र का यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस उस क्षण को चिह्नित करता है, जब 1987 में यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन लागू हुआ था।

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महिलाओं के पीछे रहने की वजह कई बार भावनात्मक निर्भरता और असुरक्षा होती है. चित्र : एडॉबीस्टॉक

हर साल 26 जून को यातना पीड़ितों के समर्थन में अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day in Support of Victims of Torture) मनाया जाता है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा ह्यूमन टॉर्चर के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है, कि यह न केवल अस्वीकार्य है बल्कि एक अपराध है।

क्या है अत्याचार पीड़ितों के समर्थन में इस दिवस का महत्व (Importance of International Day in Support of Victims of Torture)

अत्याचार पीड़ितों के सपोर्ट में सामने आने का स्पष्ट मकसद है, पीड़ितों को हो रहे टॉर्चर से बचाना। अलग-अलग वर्ग और जेंडर के कई ऐसे लोग हैं जिन्हें सालों साल टॉर्चर का सामना करना पड़ता है। इसके लिए आपको कहीं दूर जाने की भी आवश्यकता नहीं है। शायद आप में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने अपने ही घर में औरतों पर अत्याचार होते देखा होगा। कई पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर महिलाओं को भी अपने ही घर में शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक (mental torture) और यहां तक कि यौन शोषण का भी सामना करना पड़ता है।

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चाहते हुए भी वे इसका विरोध नहीं कर पातीं। जबकि संविधान ने हर व्यक्ति को मानवाधिकार के संरक्षण का अधिकार दिया है। कई ऐसे कानून भी भारत में हैं, जिनके अंतर्गत वे शोषण के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं।

कानून और अधिकारों की सही समझ उन्हें अपने साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत देती है (women rights)। एडवोकेट अमृता वर्मा सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करती हैं। वे महिलाओं द्वारा झेली जा रही यातनाओं और उनसे सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बारे में विस्तार से बता रही हैं (human rights)।

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कई ऐसे कानून भी भारत में हैं, जिनके अंतर्गत वे शोषण के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। चित्र : अडॉबीस्टॉक

इन यातनाओं के खिलाफ कानून देता है आपको आवाज उठाने की सुरक्षा (How to raise voice against torture)

1. शारीरिक प्रताड़ना (Physical torture)

घरेलू हिंसा यानी कि डोमेस्टिक वायलेंस से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया है। इसे भारत सरकार और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया था।

एडवोकेट अमृता वर्मा के अनुसार इस अधिनियम का उद्देश्य पत्नी या महिला लिव-इन पार्टनर को पति या पुरुष लिव-इन पार्टनर या उसके रिश्तेदारों के हाथों हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है। यह कानून उन महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है, जैसे की बहनें, सौतेली बहनें और मां, चाची आदि शामिल हैं। एक्ट के तहत घरेलू हिंसा में वास्तविक दुर्व्यवहार या धमकी शामिल है, चाहे वह शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक हो।

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पीड़ित महिला या उसके रिश्तेदारों को अवैध दहेज की मांग के माध्यम से परेशान करना भी घरेलू हिंसा की परिभाषा के अंतर्गत आएगा। महिलाएं इन सभी घटनाओं के खिलाफ प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 के तहत अपनी कंप्लेंट दर्ज करवा सकती हैं।

2 मानसिक और भावनात्मक टॉर्चर (Mental and emotional torture)

महिलाओं के साथ होने वाले शारीरिक टॉर्चर को लेकर तो हम सभी अक्सर बातें किया करते हैं, परंतु क्या आपने कभी मानसिक और भावनात्मक टॉर्चर (Emotional abuse) के बारे में सोचा है! कई महिलाएं ऐसी हैं, जो सालों से इस प्रकार की यातना का सामना करती चली आ रही हैं।

emotional abuse ke sanket
इमोशन एब्यूज़ एक ऐसे नॉन फिज़िकल बिहेवियर को कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति दूसरे को डराने, धमकाने और नियंत्रित करने की कोशिश करता हैं। चित्र- अडोबी स्टॉक

एडवोकेट अमृता वर्मा बताती हैं “भावनात्मक या मानसिक शोषण सेक्शन 498-A के तहत कंप्लेंट फाइल की जा सकती है। कोई भी, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होने के नाते, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करता है, तो उसे तीन साल की जेल हो सकती है और जुर्माना भी देना होगा। इसके अलावा क्रुएलिटी के अंतर्गत हिंदू मैरिज एक्ट के तहत महिलाएं सेप्रेशन या डाइवोर्स के लिए भी केस फाइल कर सकती हैं।”

3 यौन शोषण (Sexual torture)

जबरन सेक्स संबंध बनाना, बाल यौन शोषण, रिश्तेदारों द्वारा अब्यूज और ऑफिस में बॉस द्वारा किसी प्रकार के सेक्सुअल हरासमेंट किये जाने पर महिलाओं के लिए एक्शन लेना बहुत जरुरी है। इस प्रकार के एक्ट्स के लिए कई लॉ बनाये गए हैं।

एडवोकेट अमृता वर्मा के अनुसार कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 (The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition, and Redressal) Act 2013) के तहत महिलाएं केस दर्ज करवा सकती हैं।

चाइल्ड सेक्सुअल हरासमेंट (धारा 11)- तीन वर्ष और जुर्माना, (धारा 12) अश्लील प्रयोजनों में बच्चों को शामिल करना (धारा 13)- पांच वर्ष और जुर्माना तथा बाद में दोषसिद्धि की स्थिति में सात वर्ष और जुर्माना (धारा 14 (1)। इन लॉ के तहत बच्चियों के माता पिता अपनी आवाज उठा सकते हैं।

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