Jaane hemophilia ke sath jivan ko behtar banane ke tips. – जानें हीमोफीलिया…

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Jaane hemophilia ke sath jivan ko behtar banane ke tips. – जानें हीमोफीलिया…

हीमोफीलिया एक जीवन भर रहने वाला जेनेटिक डिसऑर्डर है। इससे पीड़ित व्यक्ति के लिए छोटी सी चोट भी गंभीर नुकसान का कारण बन सकती है। इसलिए हेल्दी लीविंग के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरूरी है।

हीमोफीलिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो ज्यादातर मां से बच्चों में ट्रांसफर होता है। इसके प्रति जागरूकता की कमी होने से कई बार लोगों को इसका पता देर से चलता है, वहीं परेशानी काफी बढ़ जाती है। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे (World Hemophilia Day) के रूप में मनाया जाता है। आज हेल्थ शॉट्स के साथ जानेंगे इस बीमारी से जुड़ी जरूरी जानकारी, साथ ही जानेंगे हीमोफीलिया से पीड़ित मरीजों के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल टिप्स।


भारत में अनुमानित तौर पर 80,000-100,000 गंभीर हीमोफिलिया के मामले हैं। हालांकि, हीमोफीलिया फेडरेशन इंडिया (एचएफआई) में डेटा के अनुसार कुल संख्या लगभग 19,000 है।

मेट्रोपोलिस ग्लोबल रेफरेंस लैब, मुंबई के हेमेटोलॉजी और ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट और एमडी डॉ. संजय गोहिल, ने हिमोफिलिया के लक्षण, कारण और इस स्थिति में हेल्दी लाइफस्टाइल मेंटेन करने के टिप्स बताए हैं। तो चलिए जानते हैं इस बारे में अधिक विस्तार से (How to live healthy with hemophilia)।

वर्ल्ड हीमोफीलिया डे (World Hemophilia Day)

1989 में हीमोफीलिया बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए वर्ल्ड हीमोफीलिया डे की शुरुआत की गई थी। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के संस्थापक फ्रैंक कैनबेल के जन्मदिन के उपलक्ष में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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हीमोफीलिया ए से पीड़ित आधे से अधिक लोगों में गंभीर समस्या देखने को मिलती है। चित्र : एडॉबीस्टॉक

जानें क्या है हीमोफीलिया

हीमोफीलिया से ग्रसित लोगों में रक्त का थक्का यानी की ब्लड क्लॉट्स नहीं बनता है। इस परेशानी से पीड़ित लोगों के ब्लड में एक प्रकार के प्रोटीन की कमी होती है, जिसे क्लौटिंग फैक्टर (clotting factor) भी कहते हैं। आमतौर पर हीमोफीलिया महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है। इस बीमारी को ट्रांसफर करने के लिए x क्रोमोसोम जिम्मेदार होते हैं।

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ज्यादातर केस में हीमोफीलिया महिलाओं से ट्रांसफर होता है क्योंकि क्योंकि महिलाओं में XX क्रोमोजोम पाए जाते हैं और वहीं पुरुषों में XY क्रोमोजोम होते हैं। इस प्रकार पुरुष केवल अपनी फीमेल चाइल्ड में ही हीमोफीलिया के क्रोमोसोम ट्रांसफर कर पाते हैं। क्योंकि ये क्रोमोजोम हीमोफीलिया का कारण नहीं बनते। यदि कोई महिला हीमोफीलिया से पीड़ित है तो वे अपने बेटी और बेटे दोनों में इस समस्या को ट्रांसफर कर सकती हैं, परंतु पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता।

दो तरह का होता है हीमोफीलिया

हीमोफीलिया के दो प्रमुख प्रकार होते हैं – टाइप ए और टाइप बी। ए और बी दोनों के अलग-अलग स्टेज होते हैं।

हल्का : लगभग 25% मामले हल्के होते हैं। हल्के हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ति में कारक स्तर 6-30% होता है।
मध्यम : लगभग 15% मामले मध्यम होते हैं, और मध्यम हीमोफीलिया वाले व्यक्ति में कारक स्तर 1-5% होता है।
गंभीर : लगभग 60% मामले गंभीर हैं, और गंभीर हीमोफिलिया वाले लोगों में कारक स्तर 1% से कम होता है।

हीमोफीलिया ए क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कमी के कारण होता है। इस प्रकार का हीमोफीलिया हीमोफीलिया बी से चार गुणा अधिक आम है। उनमें से, हीमोफीलिया ए से पीड़ित आधे से अधिक लोगों में गंभीर समस्या देखने को मिलती है।


हेमोफिलिया बी, जिसे आम बोलचाल की भाषा में क्रिसमस रोग कहा जाता है, क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी के कारण होता है। हीमोफिलिया बी दुनिया भर में पैदा हुए प्रत्येक 25,000 पुरुषों में से लगभग 1 को होता है।

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मसूड़ों से खून आना ओरल हाइजीन के लिए चिंता का कारण हो सकता है। चित्र: शटरस्टॉक

क्या हो सकते हैं हीमोफीलिया के लक्षण

हीमोफीलिया के लक्षण ब्लड क्लॉटिंग के कारकों के स्तर के आधार पर अलग-अलग होते हैं। यदि आपका क्लॉटिंग फैक्टर का स्तर थोड़ा कम हो गया है, तो आपको केवल सर्जरी या चोट के बाद ही ब्लीडिंग होती है। यदि इसमें गंभीर कमी है, तो आपको बिना किसी कारण के कभी भी ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। नीचे हीमोफीलिया के कुछ आम लक्षण दिए गए हैं –

कटने या चोट लगने से, या सर्जरी या डेंटल चेकअप के बाद ब्लीडिंग न रुकना।
अधिक आसानी से गहरी चोट आना।
बैक्सिनेशन के बाद असामान्य ब्लीडिंग।
आपके जोड़ों में दर्द, सूजन या जकड़न।
यूरिन और स्टूल में ब्लड आना।
बिना किसी ज्ञात कारण के नाक से खून आना।
शिशुओं में, अस्पष्ट चिड़चिड़ापन होना।
शरीर में नीले निशान पड़ना।
अधिक कमजोरी महसूस होना चलने में परेशानी होना।
आंखों के अंदर खून आना।


हीमोफीलिया गंभीर स्तर का होने पर ब्रेन ब्लीडिंग भी हो सकती हैं। इससे पीड़ित लोगों के सिर पर एक साधारण उभार मस्तिष्क में रक्तस्राव का कारण बन सकता है। यह दुर्लभ मगर सबसे गंभीर कॉम्प्लिकेशंस में से एक है। इसके संकेत और लक्षणों में शामिल हैं :

लंबे समय तक सिरदर्द
बार-बार उल्टी होना
नींद आना या सुस्ती
डबल विजन
दौरे पड़ना

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भूलकर भी इसे न करें नजरअंदाज। चित्र : एडॉबीस्टॉक

इन टिप्स का पालन कर हीमोफीलिया के साथ भी जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है (How to live healthy with hemophilia)

1. नियमित व्यायाम करें (Exercise)

व्यायाम शरीर के स्वस्थ वजन को बनाए रखने और मांसपेशियों और हड्डियों की ताकत में सुधार करने में सहायता करता है। हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों को चोट लगने वाले खेल में भाग लेने से बचना चाहिए। सुरक्षित व्यायाम विकल्पों में स्विमिंग, वॉकिंग और साइकिलिंग शामिल है।

2. कुछ दवाओं के सेवन से बचें (Avoid certain medications)

हीमोफीलिया के रोगियों को कुछ ऐसी दवाएं लेने से बचना चाहिए जो ब्लड को पतला कर सकती हैं, जैसे वारफारिन और हेपरिन। उन्हें एस्पिरिन और इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दवाओं से भी बचना चाहिए।

3. ओरल हाइजीन का ध्यान रखें (Oral hygiene)

दांतों और मसूड़ों की अच्छी तरह से सफाई करना आवश्यक है, ताकि ओरल हेल्थ संबंधी किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े। वहीं डेंटल चेकअप की नौबत न आने दें, इस स्थिति में अत्यधिक ब्लीडिंग हो सकता है। डेंटिस्ट दांत और मसूड़ों को स्वस्थ रखने के सर्वोत्तम तरीके के बारे में सलाह देने में आपकी मदद करेंगे।


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समय-समय पर उन्हें पानी पिलाती रहें। चित्र : शटरस्टॉक

4. पीड़ित बच्चे की सेफ्टी का ध्यान रखें (keep eyes on kids)

साइकिल चलाते समय बच्चों को घुटने और कोहनी पैड के साथ सुरक्षा हेलमेट पहनना चाहिए। सुनिश्चित करें कि वे कार में हमेशा अपनी सीट बेल्ट पहनें और किसी भी भरी खेल में भाग न लें, जिससे उन्हें चोट लगने की संभावना हो। फर्नीचर पर कोई नुकीला कोना या फिसलने का खतरा न हो, जिससे बच्चों को चोट न लगे।

5. वैक्सीनेशन और नियमित चेकअप करवाएं (Vaccination and regular checkup)

सर्वोत्तम देखभाल सुनिश्चित करने के लिए हीमोफीलिया उपचार केंद्र में इयरली टेस्ट आवश्यक है। मरीजों को ब्लड इन्फेक्शन के लिए नियमित रूप से परीक्षण करवाना चाहिए और हेपेटाइटिस ए और बी टीकाकरण के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

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