अमेरिका में डॉक्टर से मिलने में औसतन 26 दिन क्यों लग जाते हैं? | america is facing… – भारत संपर्क

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अमेरिका में डॉक्टर से मिलने में औसतन 26 दिन क्यों लग जाते हैं? | america is facing… – भारत संपर्क
अमेरिका में डॉक्टर से मिलने में औसतन 26 दिन क्यों लग जाते हैं?

अमेरिका में डॉक्टरों की कमी

10 करोड़ से ज्यादा अमेरिकी जो कि देश का लगभग एक तिहाई है, उसकी बुनियादी इलाज तक भी पहुंच नहीं हैं. एक मरीज को डॉक्टर अपॉइंटमेंट के लिए औसत 26 दिन लग जाते हैं. अपॉइंटमेंट अगर मिल भी जाए तो डॉक्टर से मिलने में औसत आधे घंटे का इंतजार तो तय है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है डॉक्टरों की कमी. एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन मेडिकल कॉलेजे का अनुमान है कि अमेरिका 2034 तक कम से कम एक लाख डॉक्टरों की कमी से जूझेगा. ऐसे में अमेरिका की नजर भारतीय डॉक्टरों पर है.

अमेरिका चाहता है कि काबिल भारतीय डॉक्टर मेडिकल प्रैक्टिस करते हुए वहां के मरीजों का इलाज कर सके. इसके लिए अमेरिका की तरफ से भारतीय चिकित्सकों को एक स्पेशल J1 वीजा कैटगरी में शामिल किया गया है. जिसके तहत कम से कम 5 हजार डॉक्टरों को अमेरिका में एंट्री मिलेगी. कोनार्ड 30 प्रोग्राम के मुताबिक भारतीय डॉक्टरों के वीजा में रियायतों को अमेरिका के 50 में से 30 राज्यों में शुरू किया जाएगा. इससे यहां मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों को आगे अमेरिका में जॉब करने पर भी वीजा की अवधि में छूट मिलेगी.

अमेरिका की इस हालत का कौन जिम्मेवार?

अमेरिका की इस हालात के लिए किसी एक चीज को तो जिम्मेदार ठहराना मुश्किल. इसके लिए कई फैक्टर जिम्मेवार है. जैसे सबसे पहली समस्या तो बढ़ती आबादी है. लिहाजा मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.

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ऐसा अनुमान है कि 2035 तक, 17 या उससे कम उम्र के बच्चों की तुलना में 65 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के वरिष्ठ नागरिकों की संख्या अधिक होगी. एक्सपर्ट की माने तो देश के इतिहास में यह जनसांख्यिकी असंतुलन पहली बार हुआ है.

युवा लोगों की तुलना में बुजुर्ग लोगों को तीन या चार गुना डॉक्टर के पास जाने की जरूरत होती है. एक वजह ये भी है कि जो डॉक्टर फिलहाल मरीजों का इलाज कर रहे हैं उनकी उम्र भी कहीं ज्यादा है. आने वाले दिनों में ये सभी रिटायर होंगे.

एक और बड़ी समस्या ट्रेनिंग करवाने में अमेरिका ढुलमुल रवैया. पोस्टग्रैजुएट ट्रेनिंग जैसे इंटर्नशिप एक डॉक्टर के लिए बेहद ही जरूरी है. इन सबके लिए सेंटर फॉर मेडिकेयर और मेडिकेड सर्विसेज फंड करती है लेकिन 1997 के बाद से इस फंडिंग में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है. ये डॉक्टरों में मायूसी का एक बड़ा कारण बनती है.

अमेरिका में नस्लवाद का लंबा इतिहास रहा है. इससे अस्पताल भी अछूते नहीं है. जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन में 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, जो 2018 के आंकड़ों पर आधारित था, 5.4% चिकित्सक अश्वेत हैं. इनमें से 2.6% पुरुष और 2.8% महिलाएं हैं. नस्ल और जातीयता के आधार पर सिस्टम में असमानता को दूर करने के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है.

जे 1 वीजा क्या है?

जे 1 वीजा अमेरिका का प्रायोर्टी वीजा है यानी ये वीजा तब मिलता है जब अमेरिका को जरूरत है. ये एक रेजिडेंट वीजा है जिसमें दूसरे देशों के डॉक्टर्स को अमेरिका में रहने के लिए 3 साल की मंजूरी दी जाती है. अमेरिका की 20 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है. भारत में जहां शहर में 30 से 40 फीसदी आबादी रहती है अमेरिका में 80 फीसदी आबादी शहरों में रहती है.

जाने माने इंफेक्शियस डीजीज स्पेशलिस्ट और AIDS सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट डॉक्टर इश्वर पी गिलादा कहते हैं कि भारत के डॉक्टरों को हर परिस्थिति में काम करने की आदत होती है. उनमें सहनशीलता भी ज्यादा होती है इसलिए वो अमेरिका के ग्रामीण इलाकों में लोगों का इलाज प्रभावी ढंग से कर पाएंगे. एक फायदा इससे भारत की अर्थव्यवस्था भी पड़ता है.

अमेरिका में कितने भारतीय डॉक्टर?

वर्कफोर्स में कमी को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी और असरदार कदम होता है इंपोर्ट करने का. ये कोई नई बात नहीं है. सदियों से अमेरिका जैसे कई देश ऐसा करते आ रहे हैं.

अमेरिका में हर 5 में से एक डॉक्टर ऐसा है जिसने यूएस से मेडिकल की पढ़ाई नहीं की है. इनके बगैर अमेरिका का संकट और बड़ा हो सकता है. तो अगर अमेरिका को ये सुनिश्चित करना हो कि आने वाले 10 सालों में डॉक्टरों की भयंकर कमी से न जूझे तो उसे ये कवायद अभी से शुरू करनी होगी.

अमेरिका में लगभग सवा लाख भारतीय डॉक्टर हैं. ये यहां के कुल डॉक्टरों का 10 फीसदी है. भारतीय डॉक्टर अमेरिका में हर साल लगभग 6 करोड़ मरीजों की जांच करते हैं. न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन की स्टडी के मुताबिक भारत सर्वाधिक मेडिकल ग्रैजुएट को अमेरिका भेजता है.

जब भी डॉक्टर्स को विदेश भेजने की बात होती है तो एक सवाल हमेशा से उठता है कि इससे भारत के हेल्थ सिस्टम पर असर नहीं पड़ेगा? इसका जवाब देते हुए इश्वर पी गिलादा कहते हैं कि, भारत में सालाना 110,000 से अधिक ज्यादा लोग डॉक्टर बनते हैं. इसके सामने 5000 हजार डॉक्टर की संख्या काफी कम है. उपर से इन डॉक्टरों को जे 1 वीजा के तहत 3 साल ही मदद करनी है.

भारत के लोग विदेश में ज्यादा काम कर रहे हैं

भारत दुनिया के उन देशों में सबसे ऊपर है, जहां के पढ़े डॉक्टर विकसित देशों में काम कर रहे हैं. विकसित देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट ओईसीडी के आंकड़ों के मुताबिक करीब 75 हजार भारतीय डॉक्टर विकसित देशों में काम कर रहे हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.

दूसरे नंबर पर पाकिस्तान है, जिसके 25 हजार से ज्यादा डॉक्टर विकसित देशों में हैं. फिर है रोमानिया 21,800, जर्मनी 18,827 और ब्रिटेन 18,314 के डॉक्टर भी अपना देश छोड़कर अन्य विकसित देशों में कार्यरत हैं. इस लिस्ट में रूस, इजिप्ट और पोलैंड भी हैं.

भारत के मुकाबले विदेशों में काम करने वाले चीनी डॉक्टरों की संख्या काफी कम है, जहां के सिर्फ आठ हजार डॉक्टर विकसित देशों में हैं. हालांकि सिर्फ विदेशों में काम करने वाले डॉक्टरों को इस कमी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि भारत के कुल डॉक्टरों का एक मामूली हिस्सा ही विदेशों में है.

ब्रिटेन ने भी मांगी थी मदद

कुछ महीने पहले ब्रिटेन ने भारत से मदद मांगी थी. ब्रिटेन की गुजारिश पर भारत 2000 डॉक्टर्स को एनएचएस में भेजने को राजी हो गया. दरअसल ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस संकट के दौर से गुजर रहा है. यहां भी डॉक्टर्स, नर्स की कमी है. इन डॉक्टर्स के पहले बैच को ब्रिटेन में पोस्ट ग्रेजुएट की 6 से 12 महीने की ट्रेनिंग के बाद अस्पतालों में तैनात किया जाएगा जिससे मरीजों का इलाज करने में यूके को काफी मदद मिलेगी.

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