Gold Hallmark Explained : क्या जेब पर भारी पड़ रही…- भारत संपर्क

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Gold Hallmark Explained : क्या जेब पर भारी पड़ रही…- भारत संपर्क
Gold Hallmark Explained : क्या जेब पर भारी पड़ रही हॉलमार्किंग गोल्ड ज्वैलरी, कैसे काम करता है सिस्टम?

जानें गोल्ड ज्वैलरी के हॉलमार्किंग सिस्टम के बारे में

अर्पित लंबे समय से प्लान कर रहा था कि अपनी पत्नी को गोल्ड की ज्वैलरी गिफ्ट करेगा. इसके लिए उसे अक्षय तृतीया यानी आखा तीज का मौका सही लगा, क्योंकि इस दिन गोल्ड पर अच्छा खासा ऑफर मिल जाता है. लेकिन अर्पित की एक प्रॉब्लम थी कि उसे गोल्ड की क्वालिटी और शुद्धता के बारे में ज्यादा आइडिया नहीं था. तब उसे किसी ने हॉलमार्क गोल्ड ज्वैलरी के बारे में बताया. तो चलिए आपको भी बताते हैं कि हॉलमार्क गोल्ड ज्वैलरी का सिस्टम कैसे काम करता है और ये आपकी जेब पर क्या असर डालता है?

गहनों में खोट नहीं होने का भरोसा है हॉलमार्किंग

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि गोल्ड ज्वैलरी की हॉलमार्किंग क्या होती है? इसी बात ने अर्पित की भी मदद की थी. गोल्ड हॉलमार्किंग की व्यवस्था को भारत सरकार के ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ (BIS) ने शुरू किया है. हॉलमार्क किसी भी गहने में सोने की मात्रा और उसकी शुद्धता बताने वाली एक सरकारी मुहर की तरह होता है, जिससे ग्राहक को भरोसा हो जाए कि उसने जो प्रोडक्ट खरीदा है उसमें कोई खोट नहीं.

जैसे अगर आपने कभी प्रेशर कुकर खरीदा होगा, तो उस पर आईएसआई की सेफ्टी मुहर देखी होगी. टीवी, फ्रिज और एसी पर आपने आईएसआई के साथ स्टार रेटिंग भी देखी होगी, ताकि आपको ये भरोसा हो कि आपका सामान कितनी बिजली की खपत करेगा. सिल्क और हैंडलूम के कपड़ों पर भी सरकार की ओर से अलग-अलग तरह के हॉलमार्क दिए जाते हैं.

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कैसे काम करता है हॉलमार्क का सिस्टम?

भारत सरकार हॉलमार्क के लिए बाकायदा लाइसेंस जारी करती है. लाइसेंस होल्डर की जिम्मेदारी होती है कि वह सही उपकरणों की मदद से गोल्ड या सिल्वर ज्वैलरी पर हॉलमार्क को अंकित करे. ज्वैलर्स खुद से अपनी ज्वैलरी पर हॉलमार्क साइन नहीं लगा सकते हैं. हॉलमार्क का साइन एक तिकोने के आकार का होता है, जिसके साथ ये लिखा होता है कि सोने का सामान 22 कैरेट का है या 24 कैरेट का. आज देश के 766 जिलों में हॉलमार्किंग की सुविधा उपलब्ध है.

हॉलमार्किंग का क्या है फायदा?

अब बात कि हॉलमार्किंग का फायदा क्या है? तो हॉलमार्किंग जहां आपको धोखाधड़ी से बचाने और शुद्धता की गारंटी देने का काम करती है. वहीं इसकी मदद से आपको अपने सोने का देशभर में सही दाम भी मिलता है. आप जब भी हॉलमार्क ज्वैलरी को देशभर में कहीं भी बेचने जाते हैं, तो आपको उसका उचित दाम मिल जाता है. इसका मतलब ये हुआ कि जब आप अपने पुराने सोने को बेचने जाते हो तो आपको 22 कैरेट के बदले 22 कैरेट का ही रेट मिलता है. कोई भी लोकल ज्वैलर उसे अशुद्ध बताकर आपको 18 कैरेट के बराबर का रेट नहीं दे सकता है.

जब भी आपकी गोल्ड ज्वैलरी या सिक्के पर भी हॉलमार्क का साइन अंकित किया जाता है, तो उसके साथ 6 अंकों का एक अल्फान्यूमेरिक कोड भी अंकित किया जाता है. ये कोड रियल टाइम में जेनरेट होता है, इसलिए हर ज्वैलरी या प्रोडक्ट के लिए ये अलग होता है. ये सोने के सामान के लिए बिलकुल आधार कार्ड की तरह काम करता है. हॉलमार्क से ये भी पता चल जाता है कि आपकी ज्वैलरी हाथों से बनी है या मशीन से.

कितना महंगा पड़ती है हॉलमार्क गोल्ड ज्वैलरी?

अर्पित ने जब हॉलमार्क ज्वैलरी खरीदी थी, तो उसे इस पर लगने वाले चार्जेस, गोल्ड पर लगने वाले टैक्स वगैरह की जानकारी नहीं थी. ऐसे में आप भी जान लें कि गोल्ड पर टैक्स कितना लगता है और हॉलमार्क से आपकी जेब पर कितना असर पड़ता है? भारत में मौजूदा समय पर गोल्ड खरीदने पर उसकी वैल्यू के 3 प्रतिशत के बराबर का जीएसटी देना होता है. वहीं गोल्ड ज्वैलरी के मेकिंग चार्जेस पर आपको 5 प्रतिशत जीएसटी देनी होती है.

अब अगर आप अपनी गोल्ड ज्वैलरी पर हॉलमार्क करवाते हैं, तो आपको हर आइटम के हिसाब से बस 25 रुपए एक्स्ट्रा देने होते हैं. यानी आपकी जेब पर इसका असर ना के बराबर होता है. वहीं इस पर जिस ज्वैलर ने उस आइटम को बनाया है, उसका आइडेंटिफिकेशन नंबर भी हॉलमार्क के साथ जुड़ जाता है.

इतनों को महंगा पड़ा हॉलमार्क करवाना

अब बात करते हैं कि हॉलमार्किंग को लेकर लोगों के बीच ज्यादा जागरुकता नहीं होने की वजह से कई लोग इस मामले में ठग जाते हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस बारे में लोकल सर्किल का एक सर्वे भी छापा है जिससे पता चलता है कि देश में कई लोगों की जेब पर हॉलमार्किंग ज्वैलरी का बोझ बहुत ज्यादा ही पड़ा है.

सर्वे में शामिल हॉलमार्क ज्वैलरी खरीदने वाले 71% लोगों का कहना है कि उन्होंने इसके लिए 10 प्रतिशत तक या उससे ज्यादा पैसा दिया है. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि जब लोग गोल्ड ज्वैलरी की प्रॉपर रसीद नहीं लेते, तब ज्वैलर को झोलझाल करने का मौका मिल जाता है. वह कई बार मेकिंग चार्जेस से लेकर अन्य चार्जेस में घट-बढ़ करके ग्राहक से एक्स्ट्रा पैसे वसूल लेते हैं.

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